Friday, June 13, 2008

पं. माखनलाल चतुर्वेदी की कालजयी रचनाएँ

चाह नहीं, मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं प्रेमी माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ,

चाह नहीं सम्राटों के शव पर हे हरि डाला जाऊँ,
चाह नहीं देवों के सिर पर चढूँ भाग्य पर इठलाऊँ,
मुझे तोड़ लेना वनमाली !
उस पथ में देना ‍तुम फेंक !
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने,
जिस पथ जावें वीर अनेक।

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दफना दें

लो इच्छाओं को दफना दें !
इस शरीर के कत्लगाह में
'इसकी' 'उसकी' वाह-वाह में
अंतर के गहरे अथाह में
आधी रात प्रभा‍ती गा दें।
लो इच्छाओं को दफना दें !

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