Wednesday, July 9, 2008

क्यूं कहते हो मेरे साथ कुछ भी बेहतर नही होता

क्यूं कहते हो मेरे साथ कुछ भी बेहतर नही होता

सच ये है के जैसा चाहो वैसा नही होता

कोई सह लेता है कोई कह लेता है क्यूँकी ग़म कभी ज़िंदगी से बढ़ कर नही होता

आज अपनो ने ही सीखा दिया हमे

यहाँ ठोकर देने वाला हैर पत्थर नही होता

क्यूं ज़िंदगी की मुश्क़िलो से हारे बैठे हो

इसके बिना कोई मंज़िल, कोई सफ़र नही होता

कोई तेरे साथ नही है तो भी ग़म ना कर

ख़ुद से बढ़ कर कोई दुनिया में हमसफ़र नही होता

3 comments:

सरस्वती प्रसाद said...

wah ! bahut santoshjanak baaton ki shuruaat

Sajeev said...

सुंदर प्रयास

नए चिट्टे की बहुत बहुत बधाई, लिखते रहें और हिन्दी चिट्टा जगत को अपने लेखन से समृद्ध करें, शुभकामनायें....

आपका मित्र
सजीव सारथी
09871123997

रश्मि प्रभा... said...

bahut badhiyaa