क्यूं कहते हो मेरे साथ कुछ भी बेहतर नही होता
सच ये है के जैसा चाहो वैसा नही होता
कोई सह लेता है कोई कह लेता है क्यूँकी ग़म कभी ज़िंदगी से बढ़ कर नही होता
आज अपनो ने ही सीखा दिया हमे
यहाँ ठोकर देने वाला हैर पत्थर नही होता
क्यूं ज़िंदगी की मुश्क़िलो से हारे बैठे हो
इसके बिना कोई मंज़िल, कोई सफ़र नही होता
कोई तेरे साथ नही है तो भी ग़म ना कर
ख़ुद से बढ़ कर कोई दुनिया में हमसफ़र नही होता
Wednesday, July 9, 2008
Wednesday, July 2, 2008
"Aadarsh Prem," by Dr. Harivansh Rai Bachchan
प्यार किसी को करना लेकिनकहकर उसे बताना कया
अपने को अपर्ण करना परऔर को अपनाना क्या
गुण का ग्राहक बनना लेकिनगाकर उसे सुनाना क्या
मन के कल्पित भावों सेऔरों को भ्रम में लाना क्या
ले लेना सुगन्ध सुमनों कीतोड़ उन्हें मुरझाना क्या
प्रेम हार पहनाना लेकिनप्रेम पाश फैलाना क्या
त्याग अंक में पले प्रेम शिशुउनमें स्वार्थ बताना क्या
देकर ह्रदय ह्रदय पाने कीआशा व्यर्थ लगाना क्या
अपने को अपर्ण करना परऔर को अपनाना क्या
गुण का ग्राहक बनना लेकिनगाकर उसे सुनाना क्या
मन के कल्पित भावों सेऔरों को भ्रम में लाना क्या
ले लेना सुगन्ध सुमनों कीतोड़ उन्हें मुरझाना क्या
प्रेम हार पहनाना लेकिनप्रेम पाश फैलाना क्या
त्याग अंक में पले प्रेम शिशुउनमें स्वार्थ बताना क्या
देकर ह्रदय ह्रदय पाने कीआशा व्यर्थ लगाना क्या
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