Wednesday, July 9, 2008

क्यूं कहते हो मेरे साथ कुछ भी बेहतर नही होता

क्यूं कहते हो मेरे साथ कुछ भी बेहतर नही होता

सच ये है के जैसा चाहो वैसा नही होता

कोई सह लेता है कोई कह लेता है क्यूँकी ग़म कभी ज़िंदगी से बढ़ कर नही होता

आज अपनो ने ही सीखा दिया हमे

यहाँ ठोकर देने वाला हैर पत्थर नही होता

क्यूं ज़िंदगी की मुश्क़िलो से हारे बैठे हो

इसके बिना कोई मंज़िल, कोई सफ़र नही होता

कोई तेरे साथ नही है तो भी ग़म ना कर

ख़ुद से बढ़ कर कोई दुनिया में हमसफ़र नही होता

Wednesday, July 2, 2008

"Aadarsh Prem," by Dr. Harivansh Rai Bachchan

प्यार किसी को करना लेकिनकहकर उसे बताना कया
अपने को अपर्ण करना परऔ‌र को अपनाना क्या
गुण का ग्राहक बनना लेकिनगाकर उसे सुनाना क्या
मन के कल्पित भावों सेऔरों को भ्रम में लाना क्या
ले लेना सुगन्ध सुमनों कीतोड़ उन्हें मुरझाना क्या
प्रेम हार पहनाना लेकिनप्रेम पाश फैलाना क्या
त्याग अंक में पले प्रेम शिशुउनमें स्वार्थ बताना क्या
देकर ह्रदय ह्रदय पाने कीआशा व्यर्थ लगाना क्या