मुसीबत पड़ी तो रोया था ,
ज़्यादा मुसीबत पड़ी ,तो चुप हो गया था ,
बहुत ज़्यादा मुसीबत पड़ी है ,तो हँसता हूँ
आखिर दुनिया में बसता हूँ !!!! ~ हरिवंश राय बच्चन
Friday, March 13, 2015
Saturday, February 28, 2015
देर लगी लेकिन -- जावेद अख़्तर, जिंदगी ना मिले दुबारा
देर लगी लेकिन
मैंने अब है
जीना सीख लिया
जैसे भी हों दिन
मैंने अब है
जीना सीख लिया
अब मैंने …
यह जाना है
ख़ुशी है क्या
ग़म क्या
दोनों ही
दो पल कि हैं रुतें
ना यह ठहरें ना रुकें
ज़िन्दगी दो रंगों से बने
अब रूठे अब मने
यही तो है
यही तो है
यहाँ ……..
मैंने अब है
जीना सीख लिया
जैसे भी हों दिन
मैंने अब है
जीना सीख लिया
अब मैंने …
यह जाना है
ख़ुशी है क्या
ग़म क्या
दोनों ही
दो पल कि हैं रुतें
ना यह ठहरें ना रुकें
ज़िन्दगी दो रंगों से बने
अब रूठे अब मने
यही तो है
यही तो है
यहाँ ……..
देर लगी लेकिन
मैंने अब है
जीना सीख लिया
आंसुओं के बिन
मैंने अब है
जीना सीख लिया
अब मैंने ….
यह जाना है
किसे कहूं अपना
है कोई
जो यह मुझसे कह गया
यह कहाँ तू रह गया
ज़िन्दगी तो है जैसे कारवां
तू है तनहा कब यहाँ
सब ही तो हैं
सब ही तो हैं
यहाँ …..
मैंने अब है
जीना सीख लिया
आंसुओं के बिन
मैंने अब है
जीना सीख लिया
अब मैंने ….
यह जाना है
किसे कहूं अपना
है कोई
जो यह मुझसे कह गया
यह कहाँ तू रह गया
ज़िन्दगी तो है जैसे कारवां
तू है तनहा कब यहाँ
सब ही तो हैं
सब ही तो हैं
यहाँ …..
कोई सुनाये जो
हंसती मुस्कराती कहानी
कहता है दिल
मै भी सुनु
आंसुओं के मोती हों
जो किसी कि निशानी
कहता है दिल
मै भी चुनुं
बाहें दिल कि
हों बाँहों में
चलता चलूँ
युहीं राहों में
बस युहीं
अब यहाँ
अब वहां
हंसती मुस्कराती कहानी
कहता है दिल
मै भी सुनु
आंसुओं के मोती हों
जो किसी कि निशानी
कहता है दिल
मै भी चुनुं
बाहें दिल कि
हों बाँहों में
चलता चलूँ
युहीं राहों में
बस युहीं
अब यहाँ
अब वहां
देर लगी लेकिन
मैंने अब है
जीना सीख लिया
आंसुओं के बिन
मैंने अब है
जीना सीख लिया
मैंने अब है
जीना सीख लिया
आंसुओं के बिन
मैंने अब है
जीना सीख लिया
है कोई
जो यह मुझसे कह गया
यह कहाँ तू रह गया
ज़िन्दगी तो है जैसे कारवां
तू है तनहा कब यहाँ
सब ही तो हैं
सब ही तो हैं
यहाँ …..
जो यह मुझसे कह गया
यह कहाँ तू रह गया
ज़िन्दगी तो है जैसे कारवां
तू है तनहा कब यहाँ
सब ही तो हैं
सब ही तो हैं
यहाँ …..
सब ही तो हैं
सब ही तो हैं
यहाँ ….
सब ही तो हैं
यहाँ ….
सब ही तो हैं
सब ही तो हैं
यहाँ …….
सब ही तो हैं
यहाँ …….
नर हो न निराश करो मन को -- मैथिलीशरण गुप्त
नर हो न निराश करो मन को
कुछ काम करो कुछ काम करो
जग में रहके निज नाम करो
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो न निराश करो मन को ।
कुछ काम करो कुछ काम करो
जग में रहके निज नाम करो
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो न निराश करो मन को ।
संभलो कि सुयोग न जाए चला
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
समझो जग को न निरा सपना
पथ आप प्रशस्त करो अपना
अखिलेश्वर है अवलम्बन को
नर हो न निराश करो मन को ।
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
समझो जग को न निरा सपना
पथ आप प्रशस्त करो अपना
अखिलेश्वर है अवलम्बन को
नर हो न निराश करो मन को ।
जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ
फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ
तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो
उठके अमरत्व विधान करो
दवरूप रहो भव कानन को
नर हो न निराश करो मन को ।
फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ
तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो
उठके अमरत्व विधान करो
दवरूप रहो भव कानन को
नर हो न निराश करो मन को ।
निज गौरव का नित ज्ञान रहे
हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे
सब जाय अभी पर मान रहे
मरणोत्तर गुंजित गान रहे
कुछ हो न तजो निज साधन को
नर हो न निराश करो मन को ।
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